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६-७. सूर्यप्रज्ञप्ति और चन्द्रप्रज्ञप्ति, ८. निरयावलिका, ९. कल्पावतंसिका, १०. पुष्पिकासूत्र, ११. पुष्पचूलिकासूत्र, १२. वृष्णिदशासूत्र ।
मूलसूत्र १. उत्तराध्ययनसूत्र, २. दशवैकालिकसूत्र, ३. नन्दीसूत्र,
४. अनुयोगद्वारसूत्र ।
छेदसूत्र निशीथ ।
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१. दशाश्रुतस्कंध, २. बृहत्कल्पसूत्र, ३. व्यवहारसूत्र, ४.
प्रकीर्णक (पइण्णा) १. चतुःशरण, २. आतुर प्रत्याख्यान, ३. महाप्रत्याख्यान, ४. भक्त - परिज्ञा, ५. तन्दुलवैचारिक या वैकालिक, ६. संस्तारक, ७. गच्छाचार, ८. गणिविद्या, ९. देवेन्द्र - स्तव, १०. मरणसमाधि ये दस प्रकीर्णक आगम शास्त्र काफी प्राचीन माने जाते हैं।
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दो चूलिका सूत्र - १. नन्दीसूत्र, २. अनुयोगद्वार ।
ये सभी आगम गद्य और पद्य दोनों विधाओं में उपलब्ध हैं, जिनमें सैद्धान्तिक, दार्शनिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, तात्त्विक, आचारगत एवं कथात्मक विषयों का सांगोपांग विवेचन सूत्र शैली में निबद्ध है । यह विशाल प्राकृत आगम शास्त्र भारतीय संस्कृति की बहुमूल्य धरोहर है । व्याख्या साहित्य इन आगमों पर लम्बे समय तक लिखा गया विपुलं मात्रा में व्याख्या साहित्य तथा शताधिक स्वतंत्र ग्रन्थ अर्धमागधी प्राकृत साहित्य की अमूल्य अक्षय निधि है । यह व्याख्यात्मक साहित्य पूर्वोक्त अनेक आगमों पर, मुख्यतः निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णी और टीका आदि नामों में अत्यधिक मात्रा में व्याख्या साहित्य उपलब्ध है।
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इनमें आचार्य भद्रबाहु प्रणीत निर्युक्तियां प्रायः प्राकृत गाथाबद्ध हैं। भाष्य ग्रन्थ लगभग पांचवी - छठीं शती के रचित हैं। चूर्णियां प्राकृतसंस्कृत मिश्रित रूप में गद्य में हैं। टीकायें प्रायः संस्कृत में हैं, किन्तु कथा भाग प्राय: प्राकृत में निबद्ध है।
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