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पउमचरियं, धनेश्वर सूरि (११वीं शती) विरचित सुरसुन्दरी चरियं, लक्ष्मणगणि (१२वीं शती) विरचित सुपासनाहचरिय, चन्द्रप्रभ महत्तर (१२वीं शती) द्वारा रचित सिरिविजयचंदकेवलिचरियं, नेमिचन्द्रसूरि (१२वीं शती) द्वारा रचित महावीर चरियं, देवेन्द्रसूरि (१३वीं शती) द्वारा रचित कण्हचरियं एवं सुदंसणा चरियं, अनन्तहंस (१६वीं शती) विरचित कुम्मापुत्त चरियं, सोमप्रभसूरि विरचित सुमतिनाह चरियं, वर्धमान सूरि विरचित आदिनाह चरियं एवं मनोरमा चरियं, जिनेश्वरसूरि सूरि विरचित चंदप्पहचरियं इत्यादि प्रमुख चरित काव्य ग्रन्थ हैं।
४. गद्य-पद्य मिश्रित चरित काव्य - श्री शीलांकाचार्य (९वीं शती) विरचित चउप्पन महापुरिस चरियं, गुणपाल मुनि (११वीं शताब्दी) विरचित जंबूचरियं, नेमिचन्द्रसूरि (१२वीं शती) विरचित रयणचूडराय चरियं, गुणचन्द्रसूरि (११वीं शती) द्वारा रचित महावीरचरियं - जैसे गद्य-पद्य मय चरित काव्य हैं।
५. चम्पूकाव्य - उद्योतनसूरि (शक सं. ७००) विरचित कुवलमाला कहा। . ६. मुक्तक काव्य - हाल कवि (ईसा की प्रथम शती) विरचित गाहासत्तसई (गाथासप्तशती), मुनि जयवल्लभ (चौथी शती) विरचित वज्जालग्ग, अज्ञातकर्तृक विषमबाणलीला और प्राकृत पुष्करिणी।
७. रसेतर मुक्तक काव्य - अज्ञातकर्तृक वैराग्य शतक, लक्ष्मीलाभगणि विरचित वैराग्य रसायन प्रकरण, पद्मनन्दि मुनि विरचित धम्मरसायण, कवि धनपाल रचित ऋषभ पंचासिका, उवसग्गहर स्तोत्र। इनके अतिरिक्त महाराष्ट्री प्राकृत में अन्यान्य प्रायः सभी विधाओं का विपुल साहित्य उपलब्ध है। घ) प्राकृत कथा साहित्य
प्राकृत भाषा का कथा साहित्य बहुत ही समृद्ध है। जैन आगमों में उदाहरण दृष्टान्त, उपमा, रूपक, सम्वाद और लोक प्रचलित कथा आख्यान आदि विपुल मात्रा में प्राप्त होता है। जैन आगमों का टीका
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