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(१२वीं शती) द्वारा रचित कुमारवाल डिबोह (कुमारपाल प्रति - बोध), नेमिचन्द्रसूरि (१२वीं शती) विरचित आख्यानमणि कोश, जिनचन्द्रसूरि (१२वीं शती) कृत संवेगरंगशाला, सुमतिसूरि (१३वीं शती) द्वारा रचित जिनदत्ताख्यान, रत्नशेखरसूरि (१५वीं शती) द्वारा संकलित सिरिवालकहा, जिनहर्षसूरि (१५वीं शती) कृत रयणसेहरनिवकहा, वीरदेव गणि (१५वीं शती) कृत महिवालकहा, अज्ञातकृत पाइअकहासंगहों आदि प्रमुख हैं।
इनके अतिरिक्त आरामसोहाकथा ( सम्यक्त्वसप्तति में से उद्धृत), अंजनासुन्दरीकथा, अनन्तकीर्तिकथा, आर्द्रकुमारकथा, जयसुन्दरीकथा, भव्यसुन्दरी कथा, नरदेवकथा, पद्मश्रीकथा, पूजाष्टककथा, पृथ्वीचन्द्रकथा, प्रत्येकबुद्धकथा, ब्रह्मदत्ताकथा, वत्सराजकथा, विश्वसेनकुमारकथा, शंखकलावतीकथा, शीलवतीकथा, सर्वांगसुन्दरीकथा, सहस्रमल्लचौरकथा, सिद्धसेनदिवाकरकथा, सुरसुन्दरनृपकथा, सुव्रतकथा, सुसमाकथा, सोमश्रीकथा, हरिश्चन्द्रकथानक आदि शताधिक कथाग्रन्थ प्राकृत भाषा में निबद्ध उपलब्ध हैं।
इसी प्रकार तिथियों को लेकर मौन एकादशीकथा जैसी अनेक कथायें तथा गंडयस्सकथा, धर्माख्यानककोश, मंगलमालाकथा आदि संग्रह - कथायें उपलब्ध होती हैं।
वर्तमान युग (विशेषकर बीसवीं सदी) में भी प्राकृत कथा साहित्य लेखन की परम्परा जारी है। इनमें से मुख्यतः विजय कस्तूर सूरि विरचित पाइयविन्नाणकहा, चंदनमुनि विरचित रयणबालकहा, मुनि विमलकुमार विरचित पियंकरकहा, साध्वी कंचन कुमारी कृत पाइयकहाओ आदि प्रमुख है। इनके अतिरिक्त प्रो. कमलचन्द सोगाणी, प्रो. राजाराम जैन, प्रो. प्रेमसुमन जैन, डॉ. उदयचन्द जैन, आचार्य सुनीलसागर जी विरचित अनेक प्राकृत कथायें उपलब्ध होती हैं।
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