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नाम की रचना की जोकि एक अतिमहत्वपूर्ण कथा ग्रन्थ है।
वसुदैवहिण्डी (प्रथम खण्ड के रचयिता संघदास गणि तथा द्वितीय खण्ड के रचयिता धर्मदास गणि- चतुर्थ शती) एक सुप्रसिद्ध कथा ग्रन्थ है।
भारतीय कथाओं का स्रोतभूत यह ग्रन्थ विश्वकथा साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसमें श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव के भ्रमण वृतान्त का मुख्यत: वर्णन है। साथ ही विविध ज्ञानवर्धक एवं मनोरंजक आख्यानों, चरितों तथा ऐतिहासिक वृत्तान्तों का वर्णन किया गया है। इसी ग्रन्थ की आधार पर अनेक स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखे गये हैं।
यद्यपि पैशाची प्राकृत भाषा में महाकवि गुणाड्य द्वारा विरचित वसदेवहिण्डी तो विश्वकथा साहित्य का अनमोल ग्रन्थ रहा है, किन्तु इस समय यह अनुपलब्ध है। इसी के आधार पर उपर्युक्त ग्रन्थ की रचना हुई। आचार्य हरिभद्र सूरि (आठवीं शती) प्रणीत समराइच्चकहा एवं धुत्तक्खाण (धूर्ताख्यान) प्रमुख कथा ग्रन्थ हैं।
आचार्य हरिभद्र के शिष्य दाक्षिणात्य उद्योतन सूरि (आठवीं शती) ने जालौर में कुवलयमाला कहा नामक एवं श्रेष्ठ बृहद् ग्रन्थ की रचना गद्य एवं पद्य दोनों शैली में की। इसीलिए कुछ विद्वान इसे प्राकृत चम्पकाव्य भी कहते हैं! कदली (केला) स्तम्भ की तरह इसमें मूल कथानक के साथ ही अनेक अवान्तर कथाएं भी गम्फित हैं। १८. देशी भाषाओं सहित इसमें संस्कृत, विभिन्न प्राकृतों एवं अपभ्रंश के भी उद्धरण देखने को भी मिल जाते है। काव्यात्मक सौन्दर्य की दृष्टि से यह एक अद्वितीय कथा ग्रन्थ है।
इसी तरह जिनेश्वर सूरि (११वीं शती) द्वारा रचित निव्वाण लीलावई कहा (निर्वाण लीलावती कथा) एवं कहाकोसपगरणं (कथाकोष प्रकरण), महेश्वरसूरि (११वीं शती) कृत नाणपंचमी कहा, गुणचन्द्रसूरि (देवभद्रसूरि - १२वीं शती) द्वारा गद्य-पद्य दोनों में रचित महारयणकोष, महेश्वर (महेन्द्र) सूरि कृत नम्मयासुन्दरीकहा, सोमप्रभसूरि
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