Book Title: Prakrit Bhasha Vimarsh
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 86
________________ च) शौरसेनी - गाथाओं के उदाहरण एस सुरासुरमणुसिंदवंदिदं धोदघाइकम्ममलं । पणमामि वडमाणं तित्थं धम्मस्स कत्तारं ॥ १ ॥ यह जो सुरेन्द्रों, असुरेन्द्रों और नरेन्द्रों से वन्दित हैं तथा जिन्होंने घाति कर्ममलको धो डाला है, ऐसे तीर्थरूप और धर्म के कर्ता श्री बर्द्धमान स्वामी को मैं (कुन्दकुन्दाचार्य) प्रणाम ( नमन करता हूँ । सेसे पुण तित्थयरे ससव्वसिद्धे विसुद्धसब्भावे । समणे य णाणदंसणचरित्ततववीरियायारे ॥ २ ॥ पुनः विशुद्ध सत्तावाले शेष तीर्थंकरों की सर्व सिद्ध-भगवन्तों के साथ ही, ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार तथा वीर्याचार युक्त श्रमणों को नमस्कार करता हूँ। ते ते सव्वे समगं समगं पत्तेगमेव पत्तेगं । वंदामि य वट्टंते अरहंते माणुसे खेत्ते || ३ || उन-उन सबको एकसाथ तथा मनुष्य क्षेत्र में विद्यमान अरहन्तों व्यक्तिगत समुदाय रूप से और प्रत्येक को को साथ ही साथ वन्दना करता हूँ। - किच्चा अरहंताणं सिद्धाणं तह णमो गणहराणं । अज्झावयवग्गाणं साहूणं चेदि सव्वेसिं ॥ ४ ॥ तेसिं विसुद्धदंसणणाणपहाणासमं समासेज्ज । उवसंपयामि सम्मं जत्तो णिव्वाण संपत्ती ॥ ५ ॥ (पणगं) इस प्रकार अरहन्तों को, सिद्धों को, आचार्यों को, उपाध्याय वर्ग का और सर्व साधुओं को नमस्कार करके उनके विशुद्ध-दर्शनज्ञानप्रधान आश्रम को प्राप्त करके, मैं साम्य को प्राप्त करता हूँ, जिससे निर्वाण की प्राप्ति होती है। Jain Education International ७३ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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