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१४. क)‘क्त्वा' प्रत्यय को विकल्प से इय और दूण आदेश होता है। जैसे भूत्वा > भविय, भोदूण, भोत्ता । पठित्वा > पढिय पढिदूण, पढित्ता ।
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ख) पूर्वोक्त आदेशों के साथ ही विकल्प से 'अडुअ' आदेश भी होता है। जैसे कृत्वा > कडुअ, करिय, करिदूण । गत्वा > गडुअ, गच्छिअ, गच्छिदूण ।
घ) शौरसेनी प्राकृत का उपलब्ध प्रमुख साहित्य
जैसे श्वेताम्बर जैन परम्परा के आगमों की भाषा अर्धमागधी प्राकृत है, उसी प्रकार दिगम्बर जैन परम्परा के आगम ग्रन्थ शौरसेनी प्राकृत भाषा में निबद्ध हैं। वैसे ही मथुरा प्राचीनकाल से ही जैन आचार्यों की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र रहा है, अतएव उनकी कृतियों में शौरसेनी की प्रमुखता आना स्वाभाविक है। शौरसेनी के उपलब्ध प्रमुख आगम ग्रन्थों का विवरण प्रस्तुत है -
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आचार्य पुष्पदन्त एवं भूतबलि द्वारा रचित षट्खण्डागम, आचार्य गुणधर द्वारा रचित कसायपाहुड, ( कषायप्राभृत), आचार्य यतिवृषभ द्वारा रचित तिलोयपण्णत्ति, आचार्य वट्टकेर कृत मूलाचार, आचार्य शिवार्य कृत भगवती आराधना, आचार्य कुन्दकुन्द कृत समयसार, पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, नियमसार, अष्टपाहुड, बारस अणुवेक्खा, भत्तिसंगहो ।
आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती कृत गोम्मटसार, त्रिलोकसार, लब्धिसार, क्षपणासार, आचार्य देवसेन प्रणीत दर्शनसार, भावसंग्रह, आराधनासार, तत्त्वसार, आचार्य श्रुतमुनि प्रणीत परमागमसारो, भाव त्रिभंगी, आश्रव त्रिभंगी । आचार्य वसुनन्दि प्रणीत वसुनन्दिश्रावकाचार, तच्चवियारो सारो, आचार्य कार्तिकेय प्रणीत कार्तिकेयानुप्रेक्षा । मुनि नेमिचन्द्र कृत द्रव्यसंग्रह, आचार्य शिवशर्म प्रणीत कम्मपयडि, शतकचूर्णि इत्यादि शौरसेनी प्राकृत के प्रमुख आगमसम ग्रंथ हैं।
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