________________
मकानों आदि की मरम्मत (प्रतिसंस्कार) कराते हैं; शीतल जलवाले तालाब के बाँध को सुदृढ़ कराते हैं; सभी बगीचों को नये ढंग से सँवरवाते हैं।
४. इसमें वे ३५ लाख (मुद्रा) व्यय करते हैं। (इस प्रकार वे ) प्रकृति (प्रजा) का रंजन करते हैं । और दूसरे वर्ष सातकर्णि की परवाह न कर (वे) अश्व, गज, नर, रथ, बहुल सेना दल पश्चिम दिशा में भेजते हैं। सेना कृष्णवेणा (नदी) के तट तक पहुँचकर ऋषिकनगर में आतंक उत्पन्न करती है। फिर तीसरे वर्ष (गन्धर्व विद्या में पारंगत खारवेल नगर निवासियों का मनोरंजन कराते हैं ।)
....
३. निया प्राकृत
निया प्रदेश (चीनी तुर्किस्तान) से प्राप्त लेखों की भाषा 'निया प्राकृत' कहा गया है। इस प्राकृत का तोखारी भाषा के साथ घनिष्ट सम्बन्ध है। यह भाषा पश्चिमोत्तर प्रदेश (पेशावर के आस-पास ) की मानी जाती है।
४. धम्मपद की प्राकृत
पालि धम्मपद की तरह प्राकृत में लिखा गया एक धम्मपद भी मिला है। इसकी लिपि खरोष्ठी है। इसकी प्राकृत भाषा पश्चिमोत्तर प्रदेश की बोलियों से सम्बन्ध रखती है। इस दृष्टि से उत्तर-पश्चिमी बोली के प्राचीन रूप को समझने की दृष्टि से प्राकृत धम्मपद का काफी महत्त्व है।
प्राकृत धम्मपद की गाथाओं के उदाहरण
गम्मिर - पुत्र मेधवि, मर्गमर्गस को 'इ' अ
उतमु प्रवर विर, तं अहु बोम्मि ब्रमण || ब्र० वग्ग ४९ ॥
- जिसकी प्रज्ञा गंभीर है, जो मेधावी है, जो मार्ग - अमार्ग को
जानता है, जिसने परमार्थ को प्राप्त कर लिया है उसे मैं ब्राह्मण कहती हूँ।
३८
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org