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हो जाती है।
३. ऋ ध्वनि अ इ उ स्वरों में से किसी एक स्वर में परिवर्तित
४. दोनों में विसर्ग का प्रयोग नहीं मिलता।
५. द्विवचन दोनों में नहीं है।
६. चतुर्थी और षष्ठी विभक्ति के रूप दोनों भाषाओं में प्राय एक ही रहते हैं।
होता है।
७. संयुक्त व्यंजनों का समीकरण भी दोनों में एक समान
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८. व्यंजन परिवर्तन भी समान है।
९. दोनों में ही संयुक्त व्यंजनों का समीकरण भी समान है। १०. ष और श के स्थान पर दोनों में 'य' पाया जाता है।
ग) पालि-गद्य का उदाहरण
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पालि मज्झिमनिकाय के १. मूलपरियायसुत्त का आरम्भिक वंश - एवं मे सुतं । एकं सयमं भगवा उक्कट्ठायं विहरति सुभगवने सालराजमूले। तत्थ खो भगवा भिक्खू आमन्तेसि – “भिक्खवो " ति। 'भदन्ते” ति ते भिक्खू भगवतो पच्चस्सोसुं। भगवा एतदवोच 'सब्बधम्ममूलपरियायं वो, भिक्खवे, देसेस्सामि । तं सुणाथ, साधुकं मनसि करोथ; भासिस्सामी" ति । “एवं, भन्ते" ति खो ते भिक्खू भगवतो पच्चस्सोसुं।
अर्थात् ऐसा मैंने सुना है। एक समय भगवान (बुद्ध) उक्कट्ठा के सुभग वन में किसी विशाल साल वृक्ष के नीचे विराजमान थे । वहाँ भगवान् ने भिक्षुओं को सम्बोधित किया- उन भिक्षुओं ने भगवान् को ससम्मान 'हाँ भन्ते' - कह कर उत्तर दिया।
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