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मागधी, जो सम्राट अशोक के शिलालेखों एवं महाकवि अश्वघोष के नाटकों में प्राप्त होती है। २) दूसरी मध्ययुग की मागधी है, जो भास एवं इनके परवर्ती काल के नाटकों में और प्राकृत वैयाकरणों द्वारा प्रयुक्त हुई है। शाकारी, चाण्डाली और शाबरी - इन तीन भाषाओं को भी मागधी में सम्मिलित माना जाता है।
ख) मागधी प्राकृत का उदाहरण
सम्वाद के रूप में अग्रांकित गद्यांश महाकवि कालिदास विरचित "अभिज्ञान शाकुन्तलम्" नाटक के पंचम अंक के विष्कम्भ से उद्धत है -
- प्रत्यभिज्ञानकम् (ततः प्रविशति नागरिकः श्यालः पश्चाबद्धपुरुषमादाय रक्षिणौ च)
रक्षिणौ – (ताडयित्वा) अले कुम्भिलआ। कहेहि, कहिं तुए एशे मणिबन्धणुक्किण्णणामहेए लाअकीए अङ्गुलीअए शमाशादिए ? पुरुषः - (भीतिं नाटितकेन) पशीदन्ते(न्तु) भावमिश्शे(श्शा)। अहके ण ईदिशकम्मकाली। प्रथमः - किं खु शोहणे बम्हणे त्ति कलिअ लण्णा पडिग्गहे दिण्णे ? पुरुषः - शुणुह दाणिं। अहके शक्कावदालब्भन्तलवाशी धीवले। द्वितीयः - पाडच्चला। किं अम्हेहिं जादी पुच्छिदा ? श्यालः – सूअअ ! कहेंदु सव्वं अणुक्कमेण। मा णं अन्तरा पडिबन्धह। उभौ – यं आबु(वु)त्ते आणबे(वे)दि। कहेहि। पुरुषः - अहके जालुग्गालादीहिं मच्छबन्धणोबा(वा)एहिं कुडुम्बभलणं कलेमि। . श्यालः – (विहस्य) विसुद्धो दाणिं आजीवो।
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