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इन सात सौ वर्षों के लम्बे कालखण्ड में में लगभग दो हजार शिलालेख प्राकृत में लिखे गये हैं।
प्रथम युग की इस प्राकृत का सबसे प्राचीन लिखित रूप शिलालेखी प्राकृत में मिलता है। इसके प्राचीनतम रूप अशोक के शिलालेखों में प्राप्त होते हैं। इसमें अशोक के शताधिक शिलालेख, उदयगिरि-खण्डगिरि (भुवनेश्वर, उड़ीसा) के हाथी गुम्फा आदि शिलालेख एवं पश्चिमी भारत के आन्ध्र राजाओं के शिलालेख साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं भाषा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। प्राकृत भाषा के कई रूप इसमें उपलब्ध हैं। भारत के नाम का शिलालेखीय सर्वप्राचीन उल्लेख भरधवस (भारतवर्ष) हाथी गुम्फा के इसी अभिलेख की १०वीं पंक्ति में मिलता है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह अभिलेख अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
इस प्रकार प्राकृत के विकसित रूप इन शिलालेखों में पाये जाते हैं। नाटकीय प्राकृतों के रूप में भी इन शिलालेखों की भाषा समाविष्ट हैं। मूलतः इनमें पैशाची, मागधी और शौरसेनी प्राकृत की प्रवृत्तियां पायी जाती हैं। पश्चिमोत्तरी शिलालेख पैशाची का स्वरूप उपस्थित करते हैं, पूर्वी मागधी का और दक्षिण पश्चिमी शौरसेनी का भी। शिलोलेखों के अतिरिक्त सिक्कों पर भी प्राकृत के लेख उपलब्ध हैं। शिलालेखी प्राकृत का उदाहरण सम्राट खारवेल के हाथीगुम्फा शिलालेख के आरम्भिक अंश - १. नमो अरहंतानं (*) नमो सव-सिधानं (1) ऐरेण महाराजेन
महामेघवाहनेन चेति-राज-व [वं] स-वधनेन पसथ-सुभलखनेन चतुरंतलुठ [ण]-गुण-उपितेन कलिंगाधिपतिना
सिरि-खारवेलेन २. [पं]दरस-वसानि सीरि-[कडार]-सरीर-वता कीडिता कुमार
कीडिका (i*) ततो लेख-रूप-गणना-क्वहार-विधि
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