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प्राकृत के प्रमुख व्याकरण शास्त्र
१. प्राकृत लक्षण - प्राकृत व्याकरण का यह सर्वप्राचीन ग्रन्थ है। आचार्य चण्ड (द्वितीय शताब्दी) ने इसकी रचना की है।
२. प्राकृत प्रकाश - इसके रचयिता आचार्य वररुचि (ई. की दूसरी-तीसरी शताब्दी) हैं। बारह परिच्छेदों में विभक्त इस ग्रन्थ में ५०९ सूत्र हैं।
प्राकृत प्रकाश पर अनेक टीकायें लिखी गई हैं। पहली भामह कृत मनोरमा टीका, दूसरी कात्यायन कृत प्राकृत-मंजरी टीका, तृतीय बसंतराज (१४वीं शती) कृत प्राकृत संजीवनी टीका, चतुर्थ सदानन्द (१७वीं शती) कृत प्राकृत सुबोधिनी टीका तथा पंचम नारायण विद्या विनोद कृत प्राकृत वाद टीका।
३. प्राकृत शब्दानुशासन - बंगाल निवासी पुरुषोत्तम देव (१२वीं शताब्दी) कृत प्राकृत शब्दानुशासन २० अध्यायों में विभक्त है। इसमें अपभ्रंश भाषा का भी व्याकरण प्रस्तुत किया गया है।
४. सिद्धहेमशब्दानुशासन - कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र (१२वीं शती) कृत संस्कृत एवं प्राकृत भाषा के इस व्याकरण ग्रन्थ की बहुत प्रसिद्धि है। इसके प्रथम सात अध्यायों में संस्कृत भाषा की विस्तृत व्याकरण तथा अंतिम आठवें अध्याय के चार पादों में प्राकृत भाषा की विस्तृत व्याकरण प्रस्तुत की गई है। भाषा-वैज्ञानिक दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण व्याकरण ग्रन्थ है।
५. प्राकृत शब्दानुशासन - १३वीं शताब्दी के आचार्य त्रिविक्रम कृत यह प्राकृत व्याकरण स्वोपज्ञ वृत्ति सहित है। तीन अध्यायों एवं १२ पादों से युक्त इस ग्रन्थ १०३६ सूत्र हैं। त्रिविक्रम ने इसके प्रत्येक अध्याय में अनेकार्थक शब्द भी दिये हैं।
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