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सभी उपपात्रों से लेकर नाटकों के प्रायः अधिकांश पात्र प्राकृत भाषाओं का प्रयोग सम्वादों के माध्यम से अपने विचारों और भावों को अभिव्यक्त करने में करते हैं। इन नाटकों के दर्शक इस स्वाभाविक अपनी भाषा को सुनकर आनन्द विभोर होते थे। च) संस्कृत नाटकों में प्राकृत सम्वादों की अधिकता
प्राकृत भाषा समाज के सभी वर्गों द्वारा स्वीकृत थी। वह लोगों के सामान्य जीवन को अभिव्यक्ति प्रदान करती थी। इतना ही नहीं अपितु संस्कृत नाट्य साहित्य की अनमोल कृतियों के रूप में प्रसिद्ध इन संस्कृत नाटकों को यदि प्राकृत नाटक कहा जाए तो अत्युक्ति नहीं होगी, क्योंकि इनमें संस्कृत की अपेक्षा प्राकृत भाषा का ही अधिक (लगभग साठ-पैंसठ प्रतिशत) प्रयोग सम्बादों के रूप में हुआ है।
स्थिति यह है कि महाकवि भास, कालिदास, भवभूति, हस्तिमल्ल आदि के उपलब्ध नाटक यद्यपि अनेक कारणों से संस्कृत नाटक के रूप में लोकप्रिय अवश्य हैं; किन्त इनमें भी प्राकृत भाषा और इसके बोलने वाले पात्रों की ही बहुलता है।
___ लोकप्रियता के कारण सभी प्राचीन संस्कृत नाटककारों ने प्राकृत बोलने वाले पात्रों को प्रमुख स्थान दिया। प्राकृत भाषा के प्रति बढ़ते हुए इस जनाकर्षण के कारण भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में संस्कृत नाट्य-शास्त्र के सिद्धान्त प्रतिपादित करते हुए नाट्य लेखन में यथोचित पात्रों के द्वारा विभिन्न प्राकृत भाषाओं के सम्वादों की अनिवार्यता का विधान किया। अतः इन नाटकों में संस्कृत की अपेक्षा प्राकृत भाषाओं के सम्वादों की अधिकता होना स्वाभाविक है। क्योंकि प्रायः शिक्षित पात्र (स्त्री पात्र को छोड़कर) संस्कृत बोलते हैं जो कम ही होते हैं। अशिक्षित सभी पात्र प्राकृत बोलते हैं, जिनकी संख्या काफी अधिक होती है।
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