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प्राकृत मूलतः लोकजीवन और लोकसंस्कृति की भाषा है। इस भाषा के साहित्य में मानव जीवन की स्वाभाविक वृत्तियों और नैसर्गिक गुणों की सहज-सरल अभिव्यक्ति हुई है। सम्राट अशोक. और कलिंग-नरेश खारवेल आदि के अनेक प्राचीन शिलालेख इसी प्राकृत भाषा और ब्राह्मीलिपि में उपलब्ध होते हैं। भाषाविदों ने भारत-ईरानी भाषा के परिचय के अन्तर्गत भारतीय आर्य शाखा परिवार का विवेचन किया है। प्राकृत इसी भाषा परिवार की एक आर्य भाषा है। प्राकृत भाषा क्या है ? अर्थ एवं महत्त्व
भाषा स्वभावतः गतिशील तत्त्व है। भाषा का यह क्रम ही है कि वह प्राचीन तत्त्वों को छोड़ती जाए एवं नवीन तत्त्वों को ग्रहण करती जाए। प्राकृत भाषा भारोपीय परिवार की एक प्रमुख एवं प्राचीन भाषा है। प्राचीन भारतीय आर्यभाषा काल में वैदिक भाषा का विकास तत्कालीन लोकभाषा से हुआ। प्राकृत भाषा का स्वरूप तो जनभाषा का ही रहा। प्राकृत एवं वैदिक भाषा में विद्वान् कई समानताएँ स्वीकार करते हैं। इससे प्रतीत होता है कि वैदिक भाषा और प्राकृत के विकसित होने से पूर्व जनसामान्य की कोई एक स्वाभाविक समान भाषा रही होगी जिसके कारण इसे 'प्राकृत' भाषा का नाम दिया गया।
__मूलतः प्राकृत शब्द की व्युत्पत्ति 'प्रकृत्या स्वभावेन सिद्धं प्राकृतम्' अथवा “प्रकृतीनां साधारणजनानामिदं प्राकृतम्" है। १०वीं शती के विद्वान् कवि राजशेखर ने प्राकृत को 'योनि' अर्थात् सुसंस्कृत साहित्यिक भाषा की जन्मस्थली कहा है।
रुद्रटकृत काव्यालंकार में भाषाओं के भेदों के सम्बन्ध में कहा गया है - प्राकृत-संस्कृत-मागधपिशाचभाषाश्च शौरसेनी च।
षाष्ठोऽत्र भूरिभेदो देशविशेषादपभ्रंशः॥ २/१२॥ विद्वान् व्याख्याकार नमि साधु (११वीं शताब्दी) इसकी व्याख्या
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