Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 13
________________ गवीसा, श्क्ककला तश्यगे विदेहि पुणो। तित्ती. ससहस उसय, चुलसीया तहा कला चउरो ॥३१॥ पणपन्नसहस सग सय, गुणणउआ णव कला सयलवासा । गिरि खित्तंकसमासे, जोधणलरकं हवइ पुरणं ॥३॥ पएणाससुद्ध बाहिरखित्ते दलिअम्मि उसय अमतीसा । तिएिण य कला य एसो, खेमचउक्स्स. विस्कंजो ॥३३॥ गिरिउवरि सवेश्दहा, गिरिचत्तान दसगुणा दोहा। दीहत्तअरुंदा, सवे दसजोअणुवेहा ॥३४॥ बहि पउमघुमरीया, मझे ते चेव हुंति महपुवा। तेगबिकेसरीया, अजितरिया कमेणेसुं ॥३५॥ सिरिलछी हिरिबुद्धी, धीकित्तीनामियान देवी। नवणवईपलि-वमाउ वरकमलणिलयान ॥३६॥ जबुवरि कोसगुच्चं, दह विचरपणसयंसविबारं । बाहवे विरकं, कमलं देवीण मूलिवं ॥३७॥ मूले कंदे नाले, तं वयरारिट्ठवेरुलिअरूवं। जंबुणयमज्जतवणी-जाबहिबदलं रत्तकेसरियं ॥३॥कमलपायंपिहुबु-चकणगमयकएिणगोवरिं

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