Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 42
________________ चउसु वि उसुधारेसुं, शकिकं णरणगम्मि चत्ता. हर । कूमोवरि जिणनवणा, कुलगिरिजिण लवणपरिमाणा ॥२५॥ तत्तो गुणपमाणा, चउदारा थुत्तवरिणअसरूवे । णंदीसरि बावएणा, चन कुंमलि रुथगि चत्तारि ॥ २५ ॥ बहूसंखविगप्पे रुड-गदीवि उच्चत्ति सहस चुलसीई। णरणग. सम रुगो पुण, विरि सयवाणि सहसंको ॥ २५॥ ॥ तस्स सिहरम्मि चदिसि, बीअसहसोगिगु चलचिअट्ठट्ठा। विदिसि चकश्य चत्ता, दिसिकुमरी कूमसहसंका ॥ २६० ॥ २ कश्वयदीवोदहि-विवारलेसो मए विमणावि । लिहियो जिणगणहरगुरु-सुअसुअदेवीपसाएण ॥ ॥ २६१ ॥ सेसाण दीवाण तहोदहीणं, विचारविबारमणोरपारं। सया सुयाओ परिनांवयंतु, सवं पि सव्वन्नुमश्कचित्तां ॥ २६ ॥ सूरीहि जं रयणसेह्रनामएहिं, अप्परमेव रश्यं पर खित्तविकं । संसोहियं पयरणं सुअणेहि लोए, पावेज तं कुसलरंगमई पसिाद्धं ॥ २६३ ॥ ॥ इति श्रीलघुक्षेत्रसमासप्रकरणमूलगाथाः ॥

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