Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai
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वुद्धं ॥ अनिहिय दारपहियं, चगइ जीवाण सामएणं ॥ ३१ ॥ देवा असंख नर तिरि, स्लीपुं वेय गप्न नर तिरिया॥ संखाउया तिवेया, नपुंसगा नारयाया ॥३१३ ॥ श्रायंगुलेण वg, सरीरमुस्सेह अंगुलेण तहा ॥ नग पुढवि विमाणाई, मिणसु पमाणंगुलेणं तु ॥३१४॥ सबेण सुतिकेण वि, बिनुं नित्तु च किर न सका ॥ तं परमाणु सिद्धा, वयंतियाई पमाणाणं ॥३१५ ॥ परमाणू तसरेणू , रहरेणू वालअग्गलिरका य ॥जूय जवा अहगुणो, कमेण उस्सेह अंगुलयं ॥ ६१६ ॥ अंगुलबकं पार्ड, सो गुण विहडि सा गुण हबो ॥ चउहवं धणु 5 सहस, कोसो ते जोयणं चनरो ॥३१७ ॥ चउसयगुणं पमाणं, गुलमुस्सेहंगुलाउ बोधवं ॥ उस्सेहंगुलगुणं वीरस्सायंगुलं नणियं ॥३१॥ पुढवाश्सु पत्तेयं, सग वणपत्तेय एंतदस चउद ॥ विगले सुर नारय, तिरिचउ चल चउदस नरेसु ॥३१५ ॥ जोणीण हुंति लरका, सवे चुलसी श्हेव घिप्पंति ॥ समवन्नाईनेया, ए

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