Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai
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घणवयिस्स, अप्पाजीअप्पा सरणं गईय ॥११॥ न धम्मकजा परमत्थि कहां, न पाणिहिंसा परमं अकळां ॥ न पेमरागा परमत्थि बंधो, न बोहिलाना परमथिलाभो ॥ १२ ॥ न सेवियवा पमया परका, न सेवियत्वा पुरिसा अविका ॥न सेवियवा अहिमाणी हिणा, न सेवियव्वा पिसणा मणुस्सा ॥ १३ ॥ जे धम्मिया ते खलुसे वियवा, जे पंमिया ते खलु पूछियवा ॥ जे साहणोतेअनिवंदियवा, जे निम्ममा ते पमिला. नियवा॥१५॥ पूत्ताय सोसाय समं विनंत्ता, रिसी य देवाय समं विजत्ता ॥ मुकातिरिकाय समं विनत्ता, मुयादरिदाय समं विनत्ता ॥१५॥ सवाकलाधम्मकला जिणाई, सवाकहाधम्मकहा जिणाई ॥ सवं बलं धम्मबलं जिणाई, सवं सुहं धम्मसुहं जिणाई ॥१६॥ जूए पसत्तस्स धणस्स नासो, मंसं पसत्तस्स दयाश्नासो ॥ मऊंपसत्तस्स जसस्स नासो, वेसा पसत्तस्स कुलस्स नासो॥१७॥ हिंसा पसत्तस्स सुधम्मनासो, चोरोपसत्तस्स सरी.

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