Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai
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॥ अथ श्री शीलकुलकम् लिख्यते॥
सोहग्ग महा निहिणो, पाए पणमामि नेमिजिणवश्णो ॥ बालेण जुअबलेण, जणादणो जेण निजिणि॥१॥सीलं उत्तम वित्त,सोलं जीवाण मंगलं परमं ॥ सीलं दोहग्गहरं, सीलं सुकाण कुलनवणं ॥२॥ सीलं धम्म निहाणं, सोलं पावाण खंगण नणियं॥सीलं जंतुण जए, अकित्तिमं मंगणं पवरं ॥३॥ नरय वार निरंजण, कवाम संपुम सहोअर बायं॥ सुरलोअधवलमंदिर, आरुहणे पवर निस्सेणिं॥४॥सिरिजग्गसेणधूया, रायमई लहज सोलवर रेहिं ॥ गिरि विवर गर्छ जीए, रहनेमी गवि मग्गे ॥ ५॥ पऊलिवि हु जलणो, सोलपत्नावेण पाणियं हव॥ सा जय जए सीआ, जीसे पयमा जसपमाया ॥६॥ चाणिजलेण चंपाए, जोइउग्धाभियं वारतियं॥ कस्स न हरेश चित्तं, तीय चरियं सुनहाए । ७॥ नंदउ नमया सुंदरि, सा सुचिरं जो पालियं

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