Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai
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फलं ॥ १५ ॥ किं बहुणा नणिएणं, जं कस्सषि कहवि कबक्सुिहाई ॥ दीसंति जवणमये, तन्न तवो कारणं चेव ॥ २० ॥
॥ अथ श्री नावकुलकम् लिख्यते ॥
कमठासुरेण रश्यं-मिनीसणे पलयतुलजलबोले ॥ नावेण केवललविं, विवाहि जयउ पासजिणो ॥ १॥ निचुन्नो तंबोलो, पासेण विणा न होइ जह रंगो॥ तह दाणसीलतवना-वणाउ, अहलाउ नावविणा ॥२॥ मणि मंत उसहीणं, जंतयतंताण देवयाणंपि ॥ नावेण विणा सिद्धी, न हु कस्स दोसई लोए ॥ ३ ॥ सुहनावणावसेणं, पसन्नचंदो मुहुत्तमित्तेण ॥ खविऊण कम्मगंहिं, संपत्तो केवलं नाणं ॥४॥ सुस्सूसंती पाए, गुरुणीणं गरहिऊण नियदोसे ॥ उप्पन्नदिवनाणा, मिगावई जयन सुहनावा ॥ ५॥जयवं श्लाइपुत्तो, गुरुए वंसंमि जो समारूढो ॥ दवूम मुणिवरिंदे, सुहनावा केवली जा ॥ ६॥ कविलोअबनण

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