Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 112
________________ १०७ महवाया सावया सया घोरा ॥रोगा व अंगा, आसा सरीया घण तरंगा ॥ ३३ ॥ चिंता मवी स कठग, बहुलतमा सुंदरी दरी दिठा ॥ खाणो गश्य नेया, सिहराई अठ मय नेत्रा ॥३४॥ रयणिअरोमिछत्तं, मण मुक्कमल सिलाजु ममत्तं ॥ तंनिदसु नवसेलं, काणासणिणा जिथ सहेलं ॥ ३५ ॥ जब विश्राय नाणं, नाणंपि वियाणं सिक सुहयं तं ॥ सेसं बहुंपी अहियं, जाणसु आजिविया मित्तं ॥३६ ॥ सुबह अहिरं जह जह, तहतह गवण पूरियं चित्तं ॥ हिय अप्प बोह रहीअस्स, उसहाउ नहि वाहो ॥ ३० ॥ अप्पाण म बोहंता, परं विबोहंती केई तेवि जमा जण परियणंमि बूहिए, सत्तु गारेकिं कळां ॥३॥ बोहंति परं कीवा, मुणंति कालं खरा पढति सुझं ॥ गण मुशंति सयावि हु, विणा य बोहं पुणन सिधि ॥ ३५ ॥ अवरो न नंदिअवा, पसंसि अवो कयावि नहु अप्पा ॥ समन्नावो कायवो, बोहस्स रहस्स मिणमेव ॥ ४० ॥ पर सस्कित्तं

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