Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 111
________________ १०६ सयमेव कुणसि कम्मं, तेणय वाहिकासि तुमंचेव ॥ रे जीव अप्प वेरिया अन्नस्सय देसि किं दोसं ॥ २५॥ तं कुणसि तं च जंपसि, तं चिंतसि जेण वसणोहे ॥ एय स गिहरहस्सं, नसक्किमो कहिल मन्नस्स ॥ २६ ॥ पंचिंदिअ परा चोरा, मण जुवरन्नो मिलित्तु पावस्स ॥ नियनिअयन निरत्ता, मुलग्गिं तुफ बुपंति ॥ १७ ॥ हणित विवेकग मंती, जिन्नं चनरंग धम्म चकंपि ॥ मुहं नाणार धणं, तुमंपि बूढो कुगश्कूवे ॥२०॥ इतिश्र कालं हंतो, पमा निदाइ गलीचे अन्नो ॥ जश् जग्गिठसि संपक्ष, गुरूवयणा ता नवेएसि ॥२॥ लोग पमाणोसि तुम,नाणमनणंत विरिसितुमं॥ निय राठियं चिंतसु, धम्मजाणा सणासीणे ॥ ३० ॥ कोवमणो जुवराया, कोवा रायाइ रफापऊसो ॥ जश् जग्गिसि संपर, परमेसर पश्स चे अन्ने ॥ ३१ ॥ नाणम वि जमोविव, पुजब चोरूवजजाउसि ॥ जवग्गामे किं तब, वससि साहिण सिवनयरे ॥ ३२ ॥ जब कसाय चोरा,

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