Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai
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१०९
॥४॥ वहमि पुत्तीस गुल, तातिस धणुपिहुल पणसय धणुश्च ॥ धणु सय गकोसं, तराय रयणमय चनदारा ॥५॥ चनरंसे ग धणुसय, पिह वप्पा सड कोसं अंतरिया ॥ पढम बिश्राबिद्याविअतश्या, कोसंतर पुवमिवसेसं ॥ ६ ॥ सोवाण सहसदसकर, पिहु च गंतुं जुषो पढम वप्पो ॥ तो पन्ना धणु पयरो, तय सोवाण पण सहसा॥७॥ तो बिअ वप्पो पनधणु, पयर सोवाण सहस पणतत्तो ॥ तई वप्पो उसय, धणु इगकोसेहिं तोपीढं ॥ ॥ चनदार ति सोवाणं, ममणिपीठयं जिणतणुच्चं ॥ दो घणुसय पिहु दीहं, सह कोसेहिं धरणीयला ॥ ए ॥ जिणतणुबारगुणुच्चो, समहिअजोश्रण पिहूयसोगतरू ॥ तयहोश् देव बंदो, चल सीहासण स पयपीढा ॥ १० ॥ तवरिचऊत्ततया, पमिरूव तिगं तहअथव चमरधरा ॥ पुर कणय कुसेसय विश्र, फालिह धम्म चक्क चहु ॥ ११ ॥ जयवत्त मयरमंगल, पंचाली दाम वेश् वर कलसे ॥ पश्दारं

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