Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai
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पुल्लहंपि तद सुलहं ॥ फुस्स पि सुसद्यं, तवेण संपजाए कऊं ॥ ३ ॥ बरं बठेण तवं, कुणमाणो पढम गणहरो जयवं । छा की ए महाणसीर्ड, सिरि गोामसामि जय ॥ ४ ॥ बइ सकुमारो, तवबल खेलाइल द्धिसंपन्नो ॥ नि हुन्छ खवलि अंगुलि, सुवन कंति पयासंतो ॥ ५ ॥ गो बॅज गन गनिणि, बंजण घायाइ गुरुय पावाई ॥ काऊवि कणयंपिव, तत्रेण सुद्धो दढपहारी ॥ ६ ॥ पुवनवे तिव तवो, तवि जं नंदिसेण महरिसिया ॥ वसुदेवो तेल पिर्ज, जार्ज खयरो सहस्ताणं ॥ ७ ॥ देवावि किंकरतं, कुणंति कुलजाइ विरदिआपि ॥ तवमंतपजावेणं, हरिकेसबलस्स वरिसिस्स ॥ ८ ॥ पमसयमेगपदेणं, एगेण घण घमसहस्साई ॥ जं किर कुति मुणिणो, तवकष्पतरुस्तत्तंक्खू फलं ॥९॥ नियाणस्स विदीए, तवस्स तत्रियस् किं पसंसामो ॥ किजइ जे विलासो, निकाश्यापि कम्माणं ॥ १० ॥ इडुक्करतवकारी, जगगुरुणा कन्दपुछिए तथा ॥ वाहरिजं स

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