Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 95
________________ जम्मे, जं घयदाएं कय सुसाहूणं ॥ तक्कारणमुसनजिणो, तेलुक्कपियामहो जाई ॥ ५ ॥ करुणाइ दिन्न दाणं, जम्मंतर गहिय पुन्न किरियाएं ॥ तिचयर चक्क रिद्धिं, संपत्तो संतिनाहोवि ॥ ६॥ पंचसय साहु जोठाण, दाणावकिय सुपुन्नपनारो ॥ छरिय चरिय जरिनु, जरहो जरहा हिवो जार्ज ॥ ७ ॥ मुलं विमावि दानं, गिलाण परिण जोगवपि ॥ सिद्धो रयणकंबल, चंद विणि वि तंमि जवे ॥ ८ ॥ दाऊण खीर दाणं, तवेण सुसिांग साहुणो धणि ॥ जण जणिय चमकारो, संजार्ज सालिनदोवि ॥ ए ॥ जम्मंतर दाणा, उल्लसिया पुव कुसल काणा ॥ कयउन्नो कयपुन्नो, नोगाणं जाणं जार्ज ॥ १० ॥ घयपूस वत्थपूसा, महरिसिणो दोस लेस परिहीषा ॥ लीई सयल गछो, वग्गगा सुग्गई पत्ता ॥११॥ जीवंत सामिपमिमाई, सासणं वियरिऊण जत्तीए ॥ पवईऊण सिद्धो, उदाइणो चरम रायरिसी ॥ १२ ॥ जिहरमं मियवसुदा, दानं व्यणुकंपन

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