Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 88
________________ ॥ अथ श्री पुण्यकुलकम् ५५ बोल ॥ संपुन्न इंदियत्तं, माणुसत्तं च आय रिय खित्तं ॥जाइ कुल जिणधम्मो, लब्नंति पय पुन्नेहिं॥१॥ जिण चलणकमल सेवा,सुगुरुपायपज्जुवासणं चेव॥ सज्जाय वाय वमत्तं, लग्नंति पभूयपुन्नेहिं ॥२॥ सुको बोहो सुगुरुहिं, संगमो उवसमं दयालुतं ॥ दाखिन्नं करणंज, लब्नंति पयपुन्नेहिं ॥३॥ समत्तं निच्चलत्तं, वयाण परिपालणं अमायत्तं ॥ पढणं गुणणं विण, लब्नंति पभूयपुन्नेहिं ॥४॥ उस्सग्गे अववाये, निछह विवहारंमि निजणत्तं ॥ मणवयणकायसुखी, लब्नंति पभूयपुन्नहिं ॥५॥ अवियारं तारुन्नं, जिणाणं रा परोवियारत्तं ॥ निकंपयाय काणे, खब्नंति पभूयपुन्नेहिं ॥ ६ ॥ परनिंदापरिहारो, अप्पसंसा अत्तणो गुणाणं च ॥ संवेगो निव्वेयो, लग्नंति पभूयपुन्नेहिं ॥ ७ ॥ निम्मलसीलान्जासो, दाणुल्हासो विवेगसंवासो॥ चजगई दुह संतासो, खन्नंति पभूयपुन्नेहिं ॥७॥

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