Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 80
________________ ७५ जमरो ॥ मुबिम चउपयजयगुरग, गाऊधणु जोयण पहुत्तं ॥ २९६ ॥ गप्न चनप्पय बग्गा, उयाई नुयगान गाउय पुहत्तं ॥ जोयण सहस्स मुरगा, मला उनए विय सहस्सं ॥ २ए ॥ परिक जुग धणुपुहुत्तं, सवाणंगुलअसंखन्नागलहू॥विरहो विगला सन्नी, ण जम्म मरणेसुअंतमुह ॥ २ ॥ गप्ने मुहुत्त बारस, गुरु लहु समय संखसुर तुला ॥ अणुसमय मसंखिजा, एगिदिय हुँतिय चति ॥ श्एए ॥ वणका अणंता, इविका विजं निगोया ॥ निच्चमसंखो नागो, अणंतजीवो चय३ ए३ ॥ ३०० ॥ गोलाय असंखिजा, असंख निग्गोय हवश्गोलो॥किकमि निगोए, अणंत जीवा मुणेयवा ॥ ३०१ ॥ अलि अणंता जीवा, जेहिं न पत्तो तसा परिणामो ॥ उप्पजांति चयंति य, पुणोवि तमेव तनेवा ॥ ३० ॥ सबोवि किसलः खलु, उगाममाणो अणंत नणि ॥ सोचेव विवढतो, होश परित्तो अणंतो वा ॥ ३०३ ॥ जया मोहोद तिवो, अन्नाणं खु.

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