Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 84
________________ नागे ॥ सत्तावीस श्मे वा अंतमुहत्तं तिमे वा वि ॥३२॥ जश्मे जागे बंधो, बाउस्स नवे अबाकालो सो ॥ अंतेउजुग ग सम, य वक चउ पंच समयंता ॥ ३श्ए ॥ उखु गइ पढम समए, परजवियं बाउयं तहा हारो ॥ वका बीय समए, परनविया उदयमेई ॥३३०॥ ग उति चउ बकासु, उगाश् समएसु परजवाहारो ॥ उग का सु समया, ग दो तिन्नी अणाहारा ॥ ॥ ३३१ ॥ बहुकाल वेयणि, कम्मं अप्पेण जमिह कालेणं ॥ वेश्जार जुगवंचिय, उन्न सवप्पएसग्गं ॥ ३३ ॥ अपवत्तणिजमेयं, आलं अहवा असेसकम्मंपि॥ बंध समए विबळं, सिढिलं चिय तं जहाजोगं ॥३३३॥जं पुण गाढ निकायण, बंधेणं पुवमेव किस बधं ॥ तं होश् अण पवत्तण, जुगं कम वेयणिज फलं ॥ ३३४ ॥ उत्तम चरम सरीरा, सुर नेरश्या असंख नर तिरिया ॥ हृति निरुवकमार्ग, हावि सेसा मुणेयवा ॥ ३३५ ॥ केणाउ मुवकमि जर, अप्पसमडेण श्यर गेणावि

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