Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 47
________________ सह कं, तराण इंदनवणाउ नायबा ॥ ३॥ तहिं देवा वंतरिया, वरतरुणीगीयवाश्यरवेणं । निचं सुहिया पमुश्या, गयंपि कालं न याति ॥३३॥ ते जंबूदीव नारद, विदेह सम गुरु जहन्न मजिमगा ॥ वंतर पुण अहविहा, पिसायजूया तहा जरका ॥ ३४ ॥ रकस किंनर किंपुरिसा, महो. रगा बहमा य गंधवा ॥ दाहिणउत्तरनेत्रा, सोलस तेसिं श्मे इंदा ॥ ३५ ॥ काले अ महाकाले, सुरूव पमिरूव पुरणनदेय ॥ तह चेत्र माणिनद्दे, नीमे अ तहा महाजीमे ॥ ३६ ॥ किंनर किंप्पुरिस सप्पुरिस, महापुरिस तहय अ. श्काए ॥ महाकाए गीअरई, गीअजसे पुन्नि पुन्नि कमा ॥ ३७॥ चिंधं कलंब सुलसे, वम खटुंगे असोग चंपयए ॥ नागे तुंबरुवाए, खटुंगविवजिया रुका ॥ ३० ॥ जख पिसाय महोरग, गंधवा साम किंनरा नीला ॥ रकस किंपुरिसा वि अ. धवला नुथा पुषो काला ॥३५॥ अणपन्नी पणपत्री, इसिवाइ अ जुधवाश्ए चेव ॥ कंदी व

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