Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai
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कप्पतिय पम्हलेसा, संतासु सुक्कलेस हुंति सुरा ॥ कणगान पचमकेसर, वसाडुसु तिसु उवरि धवला ॥ ११७ ॥ दसवास सहस्साईं, जहन्नमा धरंति जे देवा ॥ तेसिं चढ़था हारो, सत्तहि थोवेदि ऊसासो ॥ १७८ ॥ हि वाहि विमुक्कस्स, नीसासूसास एगगो ॥ पाणू सत्तइमो थोवो, सोवि सत्तगुणो लवो ॥ १७९ ॥ लवसन्तहत्तरीए, होइ मुहुत्तो इमम्मि ऊसाला ॥ सगतीस सय तिहुत्तर, ती सगुणाते होते ॥ १०० ॥ लरकं तेरस सहसा, नजयसयं कायरसंखयादेवे ॥ परकेडिं ऊसासो, वास सदस्सेहिं श्राहारो ॥ १०१ ॥ दसवास सदस्सुवरिं, समयाई जाव सागरं कणं ॥ दिवसमुहुत्त पहूत्ता, श्राहारूसास सेसाणं ॥ १८२ ॥ सरिरेणो उयाहारो, तयाइफ़ासेण लोमयाहारो ॥ परकेवादारोपुण, कावलि होई नायो ॥ १०३ ॥ या हारासंबे, अपजन्त पजत लोमश्राहारो ॥ सुरनिरय एगिंदविणा, सेस जवडा सपरके वा ॥ १८४ ॥ सबित्ता चित्तोजय, रूवो

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