Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai
View full book text
________________
॥ सुरनेरश्या एगि, दियाय सवे असंघयणा ॥ ॥ १६१॥ अवहेणोगम्मर, चउरो जा कप्प कोलियाईसु ॥ चउसु 5 कप्पवुढी, पढमेणं जाव. सिद्धीवि ॥ १६ ॥ समचरंसे नग्गो, हसा वा. मणय खुऊ हुंमेय ॥ जीवाण उ संगणा, सवत्र सुलरकं पढमं ॥१६३॥ नाहीए उवरि बियं, तई अमहो पिहि उयर उरवङ ॥ सिर गाव पाणि पाए, सुलकणं तं चनबं तु ॥ १६४॥ विव. रीयं पंचमगं, सबब अलरकणं नवे ॥ गप्नय नर तिरिय बहा, सुरा समा हुंमया सेसा ॥१६५॥ इति देवानां गतिछारं, अधुना आगतिहार माह ॥ जति सुरा संखाउ य, गप्पय पजात मणुयतिरिएसु ॥ पजात्ते सुय बायर नूदग पत्तेयग वणेसु ॥ १६६ ॥ तबवि सणं कुमारं, प्पनिई एगिदि. एसु नो जंति ॥ आणय पमुहा चविलं, मणुए. सु चेव गळंति ॥ १६७ ॥ दोकप्प कायसेवी, दो दो दो फरिस रूव सद्देहिं ।चउरो मणेणु वरिमा अप्पवियारा अणंतसुहा ॥ १६० ॥ जं च काम

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118