Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 66
________________ आहार सबतिरियाणं । सवनराणं च तहा. सुरनेरझ्याण अञ्चितो ॥ १५ ॥ श्रानो गाणा जोगा, सव्वेसिं होई लोम आहारो ॥ निरयाणं श्रमणुन्नो, परिणम सुराण समणुलो ॥ १६ ॥ तह विगल नारयाणं, अंतमुहुत्ता सहोश उक्कोसो पंचिंदि तिरि नराणं, साहाविय 6 अहम ॥ १७ ॥ विग्गहगमावन्ना, केवलिणो समुहया अजोगी य ॥ सिझा य श्रणाहारा, सेसा आहारगा जीवा ॥ १७ ॥ केस6ि मंस नह रो, म रुहिर वसचम्म मुत्त पुरिसेहिं ॥ रहिया निम्मल देहा, सुगंध निस्सास गय सेवा ॥ १७॥ ॥ अंतमुहुत्तेणं चिय, पात्ता तरुण पुरिस संकासा ॥ सवंगजूषणधरा, अजरानिरुया समा देवा ॥१०॥ अणि मिस नयणामणक, ऊ साहण पुप्फदाम अमिलाणा ॥ चनरंगुलेण नमि, न लिबिंति सुरा जिणा विति ॥ ११ ॥ पंचसुजिणकल्हाणे, सु चेव महरिसि तवाणुलावा ॥ जम्मं तरनेहेण य, आगछति सुरा श्हयं ॥ १५ ॥ संकंति दिवपे

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