Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 64
________________ सुहं लोए, जं च दिवं महासुहं ॥ वीयराय सुहस्सेय, शंतनागंपिनग्घई ॥१६॥ उववाउँ देवीणं, कप्पगंजा परो सहस्सारो ॥ गमणा गमणं नही, अच्चुय पर सुराणंपि ॥ १७० ॥ तिपलिय तिसार तेरस, साराकप्प उग त्तश्य लंत अहो । किब्बिसिय नहुँति उवरिं, अच्चुय पर निर्जगाई ॥ १७१॥ अपरिग्गह देवीणं, विमाण लका ब हुँति सोहम्मे ॥ पलियाई समया ठिय, ति:जासिं जाव दसपलिया ॥ १७२ ॥ ताठ सणं कुमारा, ऐवं वळति पलिय दसगेहिं ॥ जा वन सुक्क आणय, आरण देवाण पन्नासा ॥ १७३ ॥ ईसाणे चउलरका, साहिथ पलिया समय अहि यदिई ॥ जा पनर पलिय जासिं, ताऊँ माहिंददेवाणं ॥ १४ ॥ एएण कमेण नवे, समयाहिय पलिय दसग वुढ्ढीए ॥ लंत सहसार पाणय, अ चुय देवाण पणपन्ना ॥ १७५ ॥ किण्हा नीला काऊ, तेऊ पम्हाय सुक्कलेसा ॥ लवण वण पढम चउले, सजोइस कप्पगे तेक ॥ १७६ ॥

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