Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 67
________________ मा, विसय पसत्ता समत्त कत्तवा ॥ अणहीण मणुय कडा, नरजव मसुहं न ति सुरा ॥१॥३॥ चत्तारि पंचजोयण, सया गंधोय मणुय लोगस्त ॥ उ8 वच्चश् जेणं, नहु देवा तेण आवंति ॥ ॥१४॥ दो कप्प पढम पुढवी, दो दो दो बीय तश्यगं चनथिं ॥ चन उवरिम उहीए, पासंती पंचमं पुढविं ॥१५॥ही डग्गे विजा, सत्तमीयरे अणुत्तर सुरा ॥ किंचूण लोगनालिं, असंखदीवुदहि तिरियं तु ॥ १६ ॥ बहुअरगं उवरिमगा, नद सविमाण चूलिय धया॥ कणक सागरे सं, ख जोयणा तप्पर मसंखा ॥ १ ॥ पण वीस जोयण लहु नारय नवणवण जोश कप्पाणं ॥गेविज्र णुत्तराणय, जहसंखं उहियागारा ॥ १७ ॥ तप्पागारे परग, पमहग जसरि मु. हंग पुप्फजवे ॥ तिरिय मणुएसु उहि, नाणाविह सग्निणियो॥१एए। उढुं लवण वणाणं,बहुगो. वेमाणियाण होउँही ॥ नारय जोइस तिरियं, नर तिरिगाणं अणेगविहो ॥ २० ॥ श्यदेवाणं ज

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