Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 74
________________ ६९ वि देहो, उत्तर वे िय तद्दुगुणो ॥ डुविदो वि जहए कमा, अंगुल असंख संखंसो ॥२४॥ सत्तसु चजवीस मुहू, सग, पनरदिखेग 5 च उम्मासा ॥ उववाय चत्रणविरहो, उद्देवारस मुहुत्त गुरू ॥ २५० ॥ लहु हावि सम, संखा पुण सुरसमा मुणेया ॥ संखान पजत्त पणि, दितिरि नरा जंति निरएसु ॥ २५१ || मिठादिठि महारं, न परिगो तिवको निस्सोलो | नरयाजयं निबंघई, पावमई, रुद्द परिणामो ॥ २५२ ॥ सन्निरिसिव परको, ससीह रगिं बि जंति जा बहिं ॥ कमसोउक्कोसेणं, सत्तम पुढवी मय मा ॥ २५३॥ वाला दाढी परकी, जलयर नरया गया उ श्कूरा ॥ जंतिपुणो नरएसु, बाहुले न उण नियमो || ||२४|| दो पढम पुढवि गमणं, बेवठे की लियाइ संघयणे ॥ इक्विक पुढविवुट्टो, या तिलेसाठ नरसु ॥ २५५ ॥ सु काऊ तइया, काउ नोला य नील पंकाए ॥ धुमा य नील किएहा, डुसु किएह हुति लेस्सा ॥ २५६॥ सुर नारयाण तार्ज, दवल्लेस्सा

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