Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 61
________________ ५६ भवण वण जोइ सोह, म्मी सासू मुहुत्त चडवीसं ॥ तो नवदि वीसमुहू, बारसदिए दस मुहुसा य ॥ १४५ ॥ बावीस सड़दीहा, पणयाल सीइ दिसयंतत्तो ॥ संखिता दुस मासा, डुसु वासा तिसु तिगेसु कमा ॥ १४६ ॥ वासाणसया सहसा, लरका तह चसु विजयमाईसु || पलिया संखजागो, सब संखनागो य ॥ १४७ ॥ सवेसिं पि जहन्नो, समर्ज एमेव चत्रण विरहोवि । इग पुति संख मसंखा, इग समए हुंति ा चवंति ॥ १४८ ॥ नरपंचिंदिय तिरिया, गुप्पत्ती सुरजवे पजुत्ताणं ॥ जवसाय विसेसा, तेसिंगइ तारतम्मंतु ॥१४८॥ नर तिरिसंखजीवी, सवे नियमेण जंति देवेसु ॥ नियम हीला, उपसु ईसाप अंतेसु ॥ १५० ॥ जंति समुच्छिम तिरिया, जवण वर्णसु नजोइमाईसु ॥ जं तेसिं नववार्ड, पलिया संखंस आऊसु ॥ १५१ ॥ बालतवे परिबद्धा, उक्कम रोसा तवेण गारविया ॥ वेरेणय पम्बिका, मरिजं असुरेस जयंति ॥ १५२ ॥ रजुगाड़ विस जरकण,

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