Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 60
________________ जवण दारं सम्मत्तं ॥ इण्हि उगाहणा दारं नम ॥ जवण वण जोइ सोह, म्मीसाणे सत्तहब तणुमाणं ॥ चउक्केगे वि, जाणुत्तरे हाणि इक्विकं ॥ १३० ॥ कप्पडुग चउगे, नवगे पणगे य जिहग्इि अयरा॥दो सत्त चन्दछारस, बावीसिगतीस तित्तीसा ॥ १३ए ॥ विवरे ताणि कूणे, कारसगाउ पामिए सेसा ॥ हबिकारसनागा, अयरे अयरे समहियम्मि ॥ १४० ॥ चयपुवसरीराई, कमेणएगुत्तराश्वुडीए॥एवंहिएविसेसा, सणंकुमारा तणुमाणं ॥ १४१ ॥ नवधारणिज एसा, उत्तरविजवि जोयणालकं ॥ गेविज णुत्तरेसु, उत्तरवेउविधा नहि ॥ १४ ॥ साहाविय वेविय, तणू जहला कमेण पारने ॥ अंगुल असंख जागो, अंगुल संखिऊ लागो य ॥ १४३ ॥ सुरेसु उगाहणा दारं सम्मत्तं, इण्विं विरहकालोववाय उवट्टणाणं दारं जम॥ सामनेणं चनविह, सुरेसु बारस मुहुत्त उकोसा। उववायविरहकालो, अहलवणाईसुपत्तेयं ॥१४॥

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