Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 53
________________ णुसखिते परियमंति ॥ ७० ॥ बप्पएणं पंती, नक्खत्ताणं तु मणुयलोगंमि ॥ बावट्ठी बावठीए, होई इकिकिया पंती ॥१॥ एवं गहाणो विहु, नवरं धुव पासवत्तिणो तारा ॥ तंचिय पयाहिणं. ता, तमेव सया परिजमंति॥८॥ चयाल सयं पढमि, वयाए पंतीए चंदसुराणं ॥ तेणपरं पतीज, चनरुत्तरिया वुड्डाणं ॥ ७३ ॥ बावत्तरि चंदाणं, बावत्तरि सूरियाण पंतीए॥पढमाए अंतरं पुण, चंदचंदस्स लक्ख पुगं ॥४॥ जो जावर लक्खाई, विबर सागरो य दीवो वा ॥ तावश्आय तहिं, चंदासूराण पंती ॥५॥ पनरस चुलसी सयं,हससि रवि मंमलाई तक्खित्तं॥ जोयण पणसय दसहिय, नागा अमयाल इगसट्ठा ॥६॥तिसिगसट्ठा चउरो, गगसट्ठस्स सत्तनश्यस्स ॥ पणतीसं च छ जोयण, ससिरविणो मंगलं तरयं ॥७॥ पणसट्ठी निसलंमिय, तत्तिय बाहा छ जोयणं तरिया ॥ एगुणवोसं च सयं, सूरस्स य मंमला लवणे ॥ ७ ॥ मंगलद

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