Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai
View full book text
________________
नई, विजया वक्खार कप्पिदा ॥२॥ कुरु मंदर श्रावासा, कूमा नक्खत्त चंद सूरा य ॥ अन्ने वि एवमाश्, पसल वरूण जे नामा ॥७३॥ तं नामा दीवु दही, तिपमोयायार हुँति थरुणाई॥जंबू लवाईया, पत्तेयं ते असंखिजा ॥ ४ ॥ ताणं तिम सूरवरा, वजास जलहो परं तु इकिका ॥ देवे नागे जक्खे, चूए य सयंजुरमणे य ॥ ५॥ वारुणिवर खीरवरो, घयवर लवणो य हुँति निनरसा ॥ कालो य पुरकरोदहि, सयंजुरमणो य उदगरसा ॥ ७६ ॥ इक्कुरस सेसजलहो, लवणे कालो य चरिम बहुमबा॥पण सग दस जोयण सय, तणु कमा थोवसेसेसु ॥ ७॥ दो ससि दो रवि पढमे, जुगुणा लवणम्मि घायसंमे॥ बारससि बारस रवि, तप्पनिय निदिट्ठ ससिरविणो ॥ ७ ॥ तिगुणा पु विल्व जुया, अणंतराणंतरंमि खितंम्मि ॥ कालोए बायाला, बिसत्तरी पु. क्खरकंमि ॥ ए ॥ दो ससि दो रवि पंती, ए गंतरिया बसट्टि संखाया ॥ मेरु पयाहिणंता, मा

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118