Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 54
________________ सगं लवणे, पणगं निसढम्मि होश चंदस्स ॥मंमल अंतरमाणं, जाण पमाणं पुरा कहियं ॥८॥ ससिरविणोलवणं मि य, जोयण सय तिएिणतोस यहियाई॥ असिई तु जोयणसयं, जंबुद्दीवम्मिप. विसंति ॥ए ॥ गह रिक्ख तार संखं, जबसि नाउ मुदहिदीवे वा ॥ तस्ससिहि एग ससिणो, गुणसंखं होश् सव्वग्गं ॥१॥ बत्तीसट्ठावीसा, बारस अम चल विमाण लक्खाई॥पन्नास चत्त ब सहस, कमेण सोहम्म माईसु ॥ए॥ सु सयचउ सु सयतिग, मिगारसहियं सयं तिगेहिट्ठा ॥ मज्जे सत्तुत्तरसय, मुवरि तिगे सयमुवरि पंच ॥ ए३॥ चुलसी लक्ख सत्ता, एव सहस्सा विमाण तेवीसं ॥ सबग्ग मुखलोग, मिरंदया बिसट्टि पयरेसु ॥ए४ ॥ चनदिसि चउपंतीउ, बासविविमाणिया पढमपयरे ॥ उवरि इकिकहीणा, अणुत्तरे जाव इक्विकं ॥ ५५॥ इंदयवहा पंतिसु, तोकमसो तंस चउरंसा वट्टा ॥ विविहा पुप्फवकिला, तयंतरे मुत्तुं पुत्वदिसि ॥ ए६ ॥ वर्ल्ड वढेसुवरिं,

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