Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 43
________________ श्रम वृहत्सग्रहणीसूत्राणि ॥ नमि थरिहंताई विश्नघणो गाहणा य पत्तेयं ॥ सुरमारयाण वुलं, नरतिरियाणं विणा नवणं ॥१॥ नववायचवण विरहं, संखं गसमश्वं गमागमणे॥ दसवाससहस्सा, नवणवईणं, जहन्नविई॥२॥ चमर बलि सार महिलं, तदेवीणं तु तिएिण चत्तारि ॥ पलियाई सट्टाई, सेसाणं नवनिकायाणं ॥ ३ ॥ दाहिण दिवट्टपलियं, उत्तर हुँति पुन्नि देसूणा ॥ तदेवि मझ पलियं, देसूणं आजमुक्को. सं॥४॥वंतरियाण जहन्नं, दसवाससहस्स प. लिअमुक्कोसं ॥ देवीणं पलिअर्क, पलिअं अहियं ससिरवीणं ॥५॥ लरकेण सहस्सेण य, वासाण गहाण पलिअमेएसि ॥ विश् अहं देवीणं । कमेण नरकत्तत्ताराणं ॥६॥ पलिअहं चउजागो, चन अमन्नागाहिगान देवीणं ॥ चउजुअले चनजागो, जहन्नममनाग पंचमए ॥ ७॥ दोसाहि सत्तसाहिय, दस चमदस सतर अयर जा सुक्को ॥ ३किक महिय मित्तो, जा गतीसुवरि मेविजोगा

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