Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 11
________________ विकंनकरणाहिं ॥१४॥ गाउगुच्चाइ तय-ट्ठला. गरुंदाइ पउमवेईए । देसूणजोअणवर-वणाई परिमंमिअसिराहिं ॥१५॥ वेईसमेण महया, गवककमएण संपरित्ताहिं। अट्ठारसूणचउजत्तपरहिदारंतराहिं च ॥१६॥ अट्ठच्चचसुविचरउपाससकोसकुझदाराहिं । पुवाश्महड्डिय-देवादारविजयाश्नामादि ॥१७॥णाणामणिमयदेहलि -कवामपरिघाश्दारसोहाहिं । जगईहिं ते सत्वे, दीवोद हिणो परिस्कित्ता ॥१७॥ वरतिणतोरणउऊयब-त्तवाविपासायसेलसिलवट्टे । वेश्वणे वरमंमव-गिहासणेसुं रमंति सुरा॥१॥ इह अहिगारो जेसिं, सुराण देवीण ताणमुप्पत्ती । णिच. दीवोदहिणामे, असंखश्मे सणयरीसु ॥३०॥जंबूदीवो बहिँ कुल-गिरिहिं सत्तहिँ तहेव वासेहिं। पुवावरदीहेहिं, परिबिन्नो ते श्मे कमसो ॥१॥ हिमवंसिहरी महहिमव-रुप्पि णिसढोबणीलवंतो थ । बाहिर कुछ गिरिणो, उन वि

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