Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai
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कोस डुगुच्चं कमि व - कुमाणु चडवी सगुणं मज्जे ॥ १३६ ॥ पणसयवट्टपित्तं, परिखित्तं तं च पडमवेईए । गाउपुगध्धुच्च पिहु - तचारुचनदारक लिआए ॥ १३७ ॥ तं मज्जे अमवित्थर - चउच्चमणिपी दिखाई जंबुतरू । मूले कंदे खंधे, वरवयरारिट्ठवेरु लिए ||१३|| तस्सय साह पसाहा, दला य बिंटा य पल्लवा कमसो । सोवएणजायरूवा, वेरु लितवणिजजंबुण्या ॥ १३५ ॥ सो रययमयपवालो, राययविमो य रयणपुप्फफलो । कोसगं उब्वे, थुमसाहाविभिभविक्खजो ॥१४०॥ थुमसाह विडिमदीद - ति गाउए अट्ठपणारच - वीसं । सादा सिरिसमजवणा, तम्माणसचेश्चं विमिमं ॥ १४१ ॥ पुलिस तिसु - स पाणि नवणेसु पाढिासुरस्स । सा जंबू बारसवे- इयादि कमसो परिक्खित्ता ॥ १४२ ॥ दद्दपउमाणं जं वि-बरं तु तमिहावि जंबूरुक्खाणं । नवरं महयरियाणं, गणे इद अग्गमहिसी श्रो ॥ १४३ ॥ कोसडुसएहिं जंबू, चउद्दिसिं पुवसा

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