Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai
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રૂર
दिसि सुविथालवण-सामिणो गोअमु (त्त श्गु दीवो । उन्नयो वि जंबुलावण, कु रविदीया य तेसिं च ॥१०॥ जगश्परुप्परअंतरि, तह विबर बारजोयणसहसा । एमेव य पुवदिसिं, चंदचनकस्स चल दीवा ॥२१॥ एवं चित्र बाहिरो, दीवा अट्ठ पुवपछिमयो। कुछ लवण बब धायश्-संग ससीणं रवीणं च ॥ ॥ एए दीवा जनुवरि, बहिं जोअण सहअसी तहा। नागा वि अ चालीसा, मज्जे पुण कोसगमेव ॥२३॥ कुलगिरिपासायसमा, पासाया एसु णिअणिअपहणं । तह लावणजोसिया, दगफालीह उरलेसागा ॥ २२४ ॥
अथ तृतीय धातकीखंडीप अधिकार. __ जामुत्तरदोहेणं, दससयसमपिहुल पणसयुच्चेणं । उसुयारगिरिजुगेणं, धायसंमो हविहत्तो ॥२२५ ॥ खंमउगे उ गिरिणो, सग सग वासा अरविवररूवा। धुरि अंति समा गिरिणो, वासा पुण पिहुलपिहुलयरा ॥ २५६ ॥ दहकुंमुमुत्तममे

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