Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai
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लक सहस, दोसगणना धुवं तहा मज्के । उसय अमुत्तर सतस-द्विसहस बीस लरका य ॥ २३५ ॥ गुणवीस सयं बत्तीस, सहस गुणयाल सरक धुवमंते। णगिरिवणमाण विसु-चखित्त सोलंसपिहु विजया ॥२३६ ॥ णव सहसा उ सय तिल-त्तरा य बच्चेव सोल नाया य । विजयपिहुत्तं णगिरि-वण विजयसमासिचजलरका॥२३॥ पुवं व पुरी अ तरू, परमुत्तरकुरूसुधाई महधाई। रुका तेसु सुदंसण-पियदसणनामया देवा ॥२३॥ घुवरासीसु थ मिलिया, एगो लरको थ अमसयरी सहस्सा । अट्ठ सया बायाला, परिहितिगं धार्यसंमे ॥ २३ ॥
अथ कालोदधि अधिकार चतुर्थः __ कालोश्रो सबक वि, सहसंमो वेलविरहियो तब । सुबियसमकालमहा-कालसुरा पुवपलिम
ओ ॥ २४० ॥ सवणम्मि व जहसंनव,ससिरविदीवा हं पि नायव्वा । णवरं समंतयो ते, कोसउगुच्चा जलस्सुवरि ॥ २४१ ॥

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