Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 35
________________ बाहिं । वेवं धरंति कमसो, चहत्तरुखक्खु ते सव्वे ॥ २०४ ॥ बायालसहस्सेहिं, पुवेसाणादिसिविदिसि लवणे । वेलंधराणुवेलं-धरराईणं गिरिसु वासा ॥२०५॥ गोथूले दगनासे, संखे दगसीम नामि दिसि सेले । गोथूलो सिवदेवो, संखो अ मणोसिलो राया ॥२६॥ ककोमे वि. ज्जुपने, केनास रुणप्पहे विदिसि सेले। कक्कोमयु कदमयो, केलास रुणप्पहो सामी ॥ २० ॥ एए गिरिणो सवे, बावीसहीया य दससया मूले । चसय चनवीसहिया, विहिएणा हुंति सिहर• तले ॥ २० ॥ सतरस सय गवीसा, उच्चत्ते ते सवेश्या सवे। कणगंकरययफालिह, दिसासु विदिसासु रयणमया ॥ २०९ ॥ णव गुणहत्तरि जोश्रण, बहि जलुवरि चत पणणवश्नाया। एए मज्के णव सय, तेसट्ठा नाग सगसयरि ॥ १० ॥ हिमवंतंता विदिसी-साणाश्गयासु चठसु दाढासु । सग सग अंतरदीवा, पढमचउकं च जगईयो॥११॥ जोअणतिसएहिं तो,

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