Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai
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सगुणिज अंतिमगं। तं पढमरासिनश्वं, उवेहं मुणसु लवणजले ॥१६॥ हिटुवरि सहसदसगं, पिहला मूलाउ सतरसहस्सुच्चा । लवणिसिहा सा तवरि, गानपुगं वमृश् ज्वेलं ॥१७॥ बहुमज्जे चनदिसि चन, पायाला वयरकलससंगणा। जोधणसहस्स जमा, तहसगुण हिट्ठवरि रुंदा ॥१ए॥ लकं च मज्जि पिहुला, जोअणलखं च नूमिमोगाढा । पुवाश्सु वमवामुह-केजुवजूवेसरनिहाणा ॥ १५ ॥ अएणे लहुपायाला, सग सहसा अम सया सचुलसीया। पुवुत्तसयंसपमाणा, तब तब प्पएसेसु ॥२०॥ कालो अ महाकालो, वेलंबपनंजणे अ चउसु सुरा । पलियो. वमाउणो तह, सेसेसु सुरा तयझाऊ ॥ २०१ ॥ सवेसिमहोजागे, वाऊ मज्जिल्लयम्मि जलवाऊ। केवलजलमुवरिले, नागपुगे तब सासुब्व ॥२०॥ बहवे उदारवाया, मुछति खुहंति पुरिण वाराओ। एगबहोरत्तंतो, तया तया वेलपरिवुझी ॥२०३॥ बायालसट्टिासयरि-सहसा नागाण मज्जुवरि

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