Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai
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अंतरि, मज्के गलक्खु तिसय साठूणो। साहिअसय रिपणचश्-बहि लक्खो बसय साबहियो ॥ १७३ ॥ साहिश पणसहमतिहुत्तरारं, ससिणो मुहुत्तगइ मज्जे । बावरण हिया सा बहि, पश्मंमल पठणचवुनी ॥ १७४ ॥ जा ससिणो सा रविणो, अमसय रिसएणसीसएण हिया। किंचणाण अट्ठार-सहिहायाण मिह वुढी ॥ १७५ ॥ मुज्जे उदयबंतरि, चजणवश्सहस पणसय बवी. सा । बायाल सहिन्नागा, दिणं च अट्ठारसमुहुत्तं ॥१७६॥ पश्मंगल दिणहाणी, पुण्ह मुहुत्तेगसट्ठिनागाणं। अंते बारमुहुत्तं, दिणं णिसा तस्स वि. वरीया ॥ १७७ ॥ उदयवंतरि बाहिं, सहसा तेसट्टि बसय तेसट्ठा। तह गससिपरिवारे, रिकमवीसामसी गहा ॥१७॥ बासट्टि सहस एवसय, पणहत्तरि तारकोमिकोमीणं । सएणंतरेण वुस्से-हंगुलमाणेण वा हुंति ॥१७॥ गहरिकतारगाणं, संखं ससिसंखसंगुणं काउं। इडियदीवुदाई मि य, गहाइमाणं विधाणेह ॥ १० ॥

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