Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai

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Page 15
________________ जागा, तयझमाणा य बाहिरिया ॥४॥ गंगा सिंधू रत्ता, रत्तवई बाहिरं पश्चनकं । बहिदहपुवावरदा-रविबरं वह गिरिसिहरे ॥४०॥ पंच सय गंतु णिअगा-वत्तणकूमाउ बहिमुहं वल। पणसयतेवीसेहिं, साहिबतिकलाहिं सिहराउँ ॥४॥ णिवम मगरमुहोवम-वयरामयजिब्जिआश्वयरतले । णिश्रगे णिवायकुमे, मुत्तावलिसमप्पवाहेण ॥५॥ दहदारविराज, विबरपरणासन्नागजमा । जमत्ता चउगुण-दोहा सव्वजिन्नी ॥५१॥ कुंमंतो अमजोश्रण-पिहुलो जलवरि कोसगमुच्चो । वेश्जुन णश्देवी-दोवो दहदेविसमनवणो ॥५॥ जोअणसट्ठिपिहुत्ता, सवायप्पिहुलवेतिवारा । एए दसुम कुंमा, एवं अएणे विणवरं ते ॥५३॥ एसि विडारतिगं, पमुच्च समगुणचनगुणट्ठगुणा । चउसट्ठिसोलचउदो, कुंमा सवेवि श्ह णवई ॥५४॥ एवं च णश्चनकं, कुंमा बहिवारपरिवूढं । सगसहसण:समेअं, वेअलगिरि पिनिंदेश॥॥ तत्तो बाहिर

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