Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai
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बिलाईसु॥१०३॥ बहुमछचक्कवहणश्-चउक्कपासेसु णव णव बिलाई । वेअमोजयपासे, चउबालसयं बिलाणेवं ॥१०॥पंचमसमबट्ठारे, करुच्चा वीसवरिसाज गरा। महासिणो कुरूवा,कूरा बिलवासि कुगश्गमा ॥१५॥णिबजा णिवसणा, खरवयणा पिअसुवाशविरहिया। थी उबरिसगन्ना, अश्ह पसवा बहुसुश्रा य ॥१०६॥ श्व अरबकेणवस-प्पिणि तिसप्पिण। वि विवरीया। वीस सागरकोमा-कोमीओ कालचकम्मि ॥१०॥ कुरुपुगिहरिरम्मयपुगि, हेमवएरएणवश्ऽगि विदेहे। कमसो सयावसप्पिणि, अरयचनक्काइसमकालो ॥१०॥ हेमवएरएणवए, हरिवासे रम्मए य रयणमया । सद्दावर विश्रमावश्, गंधावर मालवंतक्खा ॥१०ए॥ चउवट्टविया सा-इअरुणपउमप्पनाससुरवासा।मूलुवरि पिहुत्ते तह, उच्चत्ते जोयणसहस्सं ॥११०॥ मेरू वट्टो सहस्स-कंदो लक्खूसियो सहस्सुवरि । दसगुण नुवि तं सणवर, दसिगारंसं पिहुलमूले ॥१११॥ पुढवुवलवयरसकर

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