Book Title: Prakaran Ratnakar Mool
Author(s): Mehta Nagardas Pragjibhai
Publisher: Mehta Nagardas Pragjibhai
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मयकंदो उवरि जाव सोमणसं। फलिहंकरययकचण-मश्रो अ जंबूणथो सेसो ॥११॥ तवरि चालीसुच्चा, वट्टा मूलुवरि बार चल पिहुला। वे. रुलिया वरचूला, सिरिजवणपमाणचेश्हरा ॥११३॥ चूलातलाउ चनसय, चनणवई वलयरूवविक्खंजं।बहुजलकुंमपंग-वणं च सिहरे सवेश्य॥११४॥ पएणासजोषणेहिं, चूलाओ चदिसासु जिणजवणा। सविदिसि सक्कीसाणं, चउवा विजुथा य पासाया ॥११५॥ कुलगिरिवेशहराणं, पासायाणं चिमे समट्ठगुणा । पणवीसरंदगुणा-यामान श्माउ वा. वीयो ॥११६॥ जिणहरबहिदिसि जोअण-पणसय दीहरूपिहुल चउउच्चा। अफससिसमा चउरो, सिकणयसिला सवेश्या ॥११७॥ सिलमाणट्ठसहस्सं-समाणसीहासणेहिं दोहिं जुया । सिल पंऽकंबला र-तकंबला पुठ्वपबिमयो॥११॥ जामुत्तराउ तायो, गेगसीहासणा अश्पुव्वा । चनसु वि तासु नियासण-दिसि जवजिणमजा. णं हो ॥११॥ सिहरा बत्तीसेहिं, सहसेहिं मे

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